नाराज़ और ख़फ़ा रहता हूँ तुमसे मैं आज कल
तुम दिल मेरा जब मन चाहे तोड़ जो देती हो
पर शिकायत भी क्या करू तुमसे
आख़िर ये टूटा दिल कभी तुम्हीं ने जोड़ा था
क्यों तुम गैरो को मुझसे ज्यादा मानती हो?
किसने क्या किया क्या, नहीं किया, क्या तुम ये नहीं जानती हो?
कभी हिसाब भी लगा लिया करो सबके एहसानो का
उस कागज पे सबसे ऊपर तुम मेरा नाम ही पाओगी
याद है वो मनहूस रातें
जब तुम मेरे पास आके रोया करती थी?
किसी ने तोड़ दिया था दिल तुम्हारा
ये बता के तुम मेरा दिल तोड़ने आई थी
मैं फिर भी खामोश रहता था
सोचता था कि किसी दिन तो उस अंधी को झलकेगा प्यार मेरा
पर मैं उसकी आँखों का चश्मा बन के रह गया था
उसे मेरे सिवा सब दिखता था..
~ विशाल
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